अनीश कुमार बिहार ब्यूरो/धर्मेंद्र कु लाठ पूर्णिया ब्यूरो
बिहार के बिना भारत का इतिहास अधूरा, ज्ञान और वीरता की भूमि है बिहार
– इतिहास के तीनों खंड प्राचीन, मध्य और आधुनिक काल में भारत का केंद्र बिंदू रहा है बिहार
पूर्णिया भारत का इतिहास, चाहे वह किसी भी खंड, प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक काल का ही क्यों न हो, बिहार के बिना बिल्कुल अधूरा है। बिहार हमेशा से देश के केंद्र में रहा है या यूँ कहें कि बिहार भारत की हृदय और आत्मा है, तो इसमें कहीं से कुछ गलत नहीं होगा। बिहार के बिना भारत के इतिहास की कल्पना भी नहीं हो सकती है। ज्ञान और वीरता की मातृभूमि बिहार का देश की एकता और अखंडता में जो योगदान रहा है, वह हमेशा हमेशा के लिए जीवंत और अविस्मरणीय रहेगा। बिहार के युवा लेखक अनिश कुमार ने बिहार के स्वर्णिम इतिहास से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों को रेखांकित किया है। उन्होंने बिहार के अबतक के सफर का सारांश पेश किया है।
प्राचीनकाल में बिहार से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य –
बिहार ने न केवल दुनिया को वज्जी संघ के रुप में पहला गणतंत्र दिया, बल्कि मगध के रुप में भारत को पहला संगठित साम्राज्य भी दिया। यह मगध के ही एक शासक घनानंद का खौफ और पराकाष्ठा रही कि विश्व विजेता यूनानी शासक सिकंदर को व्यास नदी के तट से वापस लौटना पडा।
हालांकि घनानंद की अशिष्टता उसपर भारी पड़ गयी और उनके अपमानजक रवैये से पीड़ित तक्षशिला के प्राचार्य चाणक्य ने अपने शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य के सहारे घनानंद को सत्ता से बेदखल करवाकर अखंड भारत के सबसे बडे साम्राज्य के रुप में मौर्य वंश की नींव रखी। हालांकि कुछ इतिहासकार यह भी मानते हैं कि चंद्रगुप्त मौर्य कोई और नहीं बल्कि किसी न किसी रुप में घनानंद का ही पुत्र था, जिसकी वीरता और नेतृत्वकारी प्रवृत्ति का पूरी दुनिया ने लोहा माना।
बिहार पर शासन करने वाले प्रमुख वंश –
वृहद्रथ, महाभारत और पुराणों के अनुसार
हरयक वंश – संस्थापक बिम्बिसार, अजातशत्रु, उदयिन, प्रमुख शासक
शिशुनाग वंश – शिशुनाग और कालाशोक, प्रमुख शासक
नंद वंश – महापद्मनंद, घनानंद
मौर्य वंश – चंद्रगुप्त मौर्य, बिंदुसार, अशोक, कुणाल, दशरथ और संप्रति
शुंग वंश – पुष्यमित्र वंश, ब्राह्मण वंश
कण्व वंश – वासुदेव
– मौर्य वंश के दो शासक चंद्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक ऐसे दो महान सम्राट हुए जिन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार पूरे भारत तक तो किया ही, साथ ही भारत के बाहर भी अपना साम्राज्य को फैलाया। हालांकि दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्र जरूर इसके अपवाद हैं, क्योकि अशोक के दूसरे अभिलेख में केवल चोल, चेर और पांड्य का ही उल्लेख मिलता है जिनके साथ उन्होंने किसी न किसी रुप में अपने संबंध को प्रगाढ बनाया। दक्षिण भारत के साथ उनके संबंध बेहतर होने का एक प्रमाण यह भी है कि दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक के चार स्थान मेटूर, मस्की, उदयगोलन और गुजररा से अशोक के नाम भी मिल रहे हैं।
– मौर्य वंशीय शासक चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने ही कलिंग को जीता, जिसका प्रमाण कलिंग नरेश जैन धर्म के अनुयायी खारवेल के हाथीगुम्फा लेख से मिलते हैं। यही अभिलेख अशोक का सबसे बडा अभिलेख भी है और सबसे छोटा रुम्मनदेई, नेपाल । हालांकि अशोक के कुल 14 शिलालेख हैं जो आठ भागों में है जिसकी भाषा पाली और लिपि ब्राह्मी, खरोष्ठी और अरामाइक है। अफगानिस्तान से मिला दो अभिलेख गुंबद और मानसेहरा की लिपि अरामाइक है जिसकी अभी की स्थिति पाकिस्तान कही जा सकती है।
– मौर्य वंश के महान शासक चक्रवर्ती सम्राट अशोक से पूर्व भी नंद वंशीय शासक महापद्मनंद भी कलिंग को जीत कर वहां से कई चीज मगध ले आया था।
प्रमुख बौद्ध संगीतियां –
पहला – राजगृह, शासक अजातशत्रु, अध्यक्षता – महाकश्शप, सुत्त पीटक और विनय पीटक का संकलन
– दूसरा – वैशाली – कालाशोक – अध्यक्षता
– तीसरा – पाटलिपुत्र – अशोक, अध्यक्षता – मोगलिपुत्त तिस्स, अभिधम्मपीटक का संकलन
– चौथा – कश्मीर, कुंडलवन, कनिष्क, अध्यक्ष – वसुमित्र, उपाध्यक्ष – अश्वघोष
– दो जैन संगीति हुई। पहली पाटलिपुत्र में चंद्रगुप्त मौर्य के समय और दूसरी गुजरात के बल्लभी में।
बिहार में मध्यकालीन इतिहास से जुड़े तथ्य –
बिहार में मध्यकाल का समय भी काफी समृद्ध और वीरता भरा रहा है। बंगाल के क्षेत्र में पाल वंश के कमजोर शासन का परिणाम रहा मिथिला क्षेत्र में करनाट वंश का शासन । नान्यदेव द्वारा स्थापित करनाट वंश को मिथिला का स्वर्णयुग कहा जाता है, क्योकि इस क्षेत्र में इस वंश ने कई महत्वपूर्ण कार्य किये।
– हालांकि कुछ आततायी, तुर्क बख्तियार खिलजी ने 10-11वीं सदी में बिहार की महान विरासत स्थल शिक्षा का केंद्र नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय को तहस नहस कर दिया, जिसकी नींव गुप्त शासक कुमारगुप्त ने रखी थी। यह विश्वविद्यालय चीनी यात्री ह्वेनसांग और फाहियान के अध्ययन का भी केंद्र रहा है।
– जब दिल्ली सल्तनत पर तुगलक वंश का शासन आया तो बंगाल विजयी से लौटने के क्रम में फिरोजशाह तुगलक ने बिहार के मिथिला वंशीय करनाट शासक हरिसिंह को हराकर बिहार को दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बना लिया। तब से ही बिहार मुस्लिम शासकों के अधीन होकर रह गयी।
– मध्यकाल में बिहार के सासाराम से आने वाले एक अफगान शेर खां उर्फ शेरशाह सूरी के इर्दगिर्द रहा, जिसके अदम्य पराक्रम ने शक्तिशाली मुगल बादशाह हुमायूं को दो दो बार हराकर दिल्ली में शूर वंश की नींव डाली। शेरशाह सूरी की जन कल्याणकारी नीतियां इतनी बेहतर थी कि मुगल बादशाह अकबर ने भी उनकी अनुसरण किया। हालांकि शेरशाह सूरी के उत्तराधिकारी में इस्लाम साह को अगर छोड़ दें तो बांकी कुछ खास असर नहीं छोड़ सके। अंततः सरहिंद के युद्ध में हुमायूं ने एक बार फिर दिल्ली को हथिया लिया।
– मध्यकाल में राॅल्फ फिंच और टैवरनियर जैसे यात्रियों का भी बिहार आगमन हुआ जिन्होंने बिहार की प्रशंसा किया।
बिहार में आधुनिक काल से जुड़े तथ्य –
बिहार, जो कभी स्वतंत्र प्रांत था, 16-17वीं सदी में बंगाल के शासक ने इसे जीतकर बंगाल का हिस्सा बना लिया। तब से ही बिहार बंगाल का हिस्सा रहा। जब अंग्रेज भारत में शासन करने लगे तो उन्होंने अपनी प्रारंभिक राजधानी बंगाल को ही बनायी थी, क्योकि बंगाल हर तरह से काफी समृद्ध था। बंगाल का सुदूरवरती क्षेत्र होने के कारण बिहार की उपेक्षा होने लगी। बंगाली का बिहारी क्षेत्र पर धीरे-धीरे प्रभुत्त्व बढता गया और बिहार का क्षेत्र लगातार पिछड़ता चला गया। अंततः 19वीं सदी में आधुनिक बिहार के निर्माता के रुप में प्रसिद्धि सच्चिदानंद सिन्हा, संविधान सभा के पहले अस्थायी अध्यक्ष, ने बिहार को बंगाल से अलग कर एक अलग प्रांत बनाने की बात को लेकर आंदोलन तेज किया। बिहारी टाइम्स पत्रिका के माध्यम से एक अलग बिहार के लिए लेख प्रकाशित करना आरंभ किया गया।
– 1906 में राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में बिहारी छात्र सम्मेलन हो या फिर 1908 में बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमेटी का सम्मेलन हो, एक पृथक बिहार के लिए जोरदार आवाज उठायी।
– 12 दिसंबर 1912, तीसरा दिल्ली दरबार, ब्रिटिश सम्राट पंचम के विभिन्न घोषणाओं में एक महत्वपूर्ण घोषणा बिहार को एक अलग प्रांत के रुप में मान्यता
– 22 मार्च 1912 – एक अलग प्रांत के रुप में बिहार-उड़ीसा संयुक्त प्रांत की स्थापना
– 1916 के कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में मुरली भरहवा के किसान राजकुमार शुक्ल के द्वारा ब्रजकिशोर प्रसाद के माध्यम से गांधी को चंपारण में नील किसानों की दयनीय स्थिति को सुधारने की दिशा में बिहार आने का आमंत्रण ( नील के दाग में गांधी ने किया है अपने लेख के माध्यम से इसकी चर्चा)
– 1917 में चंपारण सत्याग्रह, गांधी का पहला सविनय अवज्ञा। 25 प्रतिशत अवैध वसूली की रैयतों को वापसी। किसानों को तीनकठिया प्रथा से मुक्त।
– गांधी को महात्मा का खिताब, रवीन्द्रनाथ टैगोर के द्वारा
– बिहार में दिसंबर 1916 में मजहरुल हक के द्वारा स्वशासन की मांग को लेकर होमरुल लीग की स्थापना पटना में ।
– 1918 में एनी बेसेंट का दो बार (18 अप्रैल, 25 जुलाई) बिहार आगमन
– 1919 में मजहरुल हक के द्वारा खिलाफत आंदोलन को दिया गया बिहार में नेतृत्व
– 01 अगस्त 1920 को बिहार में असहयोग आंदोलन। नेतृत्वकारी लोग – राजेंद्र प्रसाद
– 1921 – गांधी जी का पटना आगमन । 06 फरवरी 1921 – अखिल भारतीय चरखा समिति और बिहार विद्यापीठ की स्थापना
– बिहार विद्यापीठ – मजहरुल हक – कुलाधिपति, ब्रजकिशोर प्रसाद – कुलपति
– 05 फरवरी 1921 – बिहार राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना । प्राचार्य – राजेंद्र प्रसाद
फरवरी 1923 – अखिल भारतीय स्वराज सभा । स्थापना – बिहार केसरी श्रीकृष्ण सिंह
1928 – हसन इमाम, अनुग्रह नारायण सिंह और अली इमाम के द्वारा साइमन कमीशन का बहिष्कार
1929 – बिहार प्रांतीय किसान सभा – स्वामी सहजानंद सरस्वती ( सोनपुर)
1930 – गांधी जी का सविनय अवज्ञा आंदोलन । पटना के नखासपिंड में नमक कानून को किया जायेगा भंग, नेतृत्व – जगत नारायण लाल
– चंपारण और सारण से सविनय अवज्ञा आंदोलन की होगी शुरुआत
– 4 मई 1930 को गांधी की गिरफ्तारी पर बिहार में हड़ताल
– 1931 – रामवृक्ष बेनीपुरी, गंगा नारायण सिंह, रामानंद मिश्रा के द्वारा समाजवादी पार्टी का गठन
1934 – पटना के अंजुमन इस्लामिया हाॅल में कांग्रेस समाजवादी पार्टी का गठन । फुलेना प्रसाद श्रीवास्तव और जयप्रकाश नारायण ।
1934 – गया में दूसरी बार प्रांतीय किसान सभा का सम्मेलन, अध्यक्ष अंबिका चरण मजूमदार
1935 – सोनपुर में तीसरी बार प्रांतीय किसान सभा का सम्मेलन, अध्यक्ष स्वामी सहजानंद सरस्वती
1936 – लखनऊ में अखिल भारतीय किसान सभा का सम्मेलन, अध्यक्ष स्वामी सहजानंद सरस्वती, सचिव आचार्य नरेंद्र देव
– 1935 के भारत शासन अधिनियम के तहत प्रांतीय स्वायत्तता । 1937 में बिहार में 152 सीट पर चुनाव । कांग्रेस को 98 सीट प्राप्त, लेकिन कांग्रेस की ओर से श्रीकृष्ण सिंह ने नहीं बनायी सरकार, अंततः मो युनूस बने बिहार के पहले प्राइम
– जुलाई 1937 में कांग्रेस की ओर से श्रीकृष्ण सिंह ने बनायी सरकार । दो बार दिया इस्तीफा( 1938 और अक्टूबर 1939)
– 1940 – महात्मा गांधी के द्वारा महाराष्ट्र के पवनार आश्रम से व्यक्तिगत सत्याग्रह की शुरुआत
– बिहार में सत्याग्रही – श्रीकृष्ण सिंह और अनुग्रह नारायण सिंह
– 09 अगस्त 1942 – भारत छोड़ो आंदोलन
– जयप्रकाश नारायण की गिरफ्तारी – हजारीबाग जेल
– राजेंद्र प्रसाद और श्रीकृष्ण सिंह – बांकीपुर जेल
– दीपावली के दिन नवम्बर में जयप्रकाश नारायण रामवृक्ष बेनीपुरी की सहायता से जेल से भागकर नेपाल की तराई में जाकर बकरीटापू पर आजाद दस्ता का गठन करते हैं।
11 अगस्त 1942 – पटना सचिवालय गोलीकाण्ड, तत्कालीन जिला पदाधिकारी डब्लू आरचर के आदेश पर छात्रों की भीड़ पर गोलीबारी। सात छात्र उमाशंकर सिंह, अजीत सिंह आदि शहीद ।
– 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय मुंगेर के तारापुर में भी लोगों पर चलायी गयी थी गोली। कई लोग हो गये थे शहीद
– अंततः 1947 में देश स्वतंत्र, आजाद देश में बिहार के पहले मुख्यमंत्री बने श्रीकृष्ण सिंह, उप मुख्यमंत्री अनुग्रह नारायण सिंह
– अबतक आजाद बिहार को मिला है 22 मुख्यमंत्री और पांच उप मुख्यमंत्री। नीतीश कुमार बिहार के 22वें और तेजस्वी पांचवें उपमुख्यमंत्री हैं।