धर्मेंद्र कु लाठ पूर्णिया/ ब्यूरो/
निजी कंपनी के शाखा मैनेजर हादसे का शिकार, इलाज हेतु आर्थिक मदद नहीं दे रही कंपनी
– इलाज खर्च हेतु दर दर की ठोकरें खाने को विवश हैं शाखा मैनेजर
पूर्णिया । किसी ने ठीक ही कहा है, सक्षमता तक ही आपकी पूछ है, सक्षमता में अगर किसी कारणवश बाधा उत्पन्न हुई तो आपकी खोज खबर लेने वाले भी आपसे दूरी बना लेते हैं।कुछ इसी तरह के एक मामले सामने आये हैं एक निजी कंपनी सूरज फ्राइट कैरियर प्राइवेट लिमिटेड के कर्मचारी शाखा मैनेजर सुशील झा के साथ। उन्होंने लगभग सात साल तक अपना रात दिन एक कर इस कंपनी के लिए अपनी सेवाएं दी, लेकिन जब वे एक हादसे का शिकार हो गये और इलाज हेतु उन्हें रुपये की जरूरत पड रही है तो कंपनी आर्थिक मदद तो दूर उसकी सुधि लेना भी मुनासिब नहीं समझ रहे हैं।
शाखा मैनेजर श्री झा का इलाज फिलहाल मैक्स 7 अस्पताल में चल रहा है और वे किसी तरह सगे संबंधियों से मदद लेकर अपना इलाज करा रहे हैं। हालांकि आर्थिक अभाव में उनका सही तरीके से इलाज संभव नहीं हो पा रहा है। लोगों का कहना है कि सूरज फ्राइट कैरियर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के प्रबंधकों की नैतिकता और मानवता पूरी तरह से खत्म हो चुकी है। जिस व्यक्ति ने अपना लगभग सात साल कंपनी की सेवा को तन मन धन से समर्पित किया, आज वे अपने इलाज हेतु दर दर की ठोकरें खा रहे हैं और कंपनी की ओर से उन्हें किसी भी तरह की कोई सहायता नहीं दी जा रही है। यहां तक कि उनकी सुधि तक नहीं ली जा रही है। गौरतलब है कि भारत में स्वास्थ्य का अधिकार जीवन के तमाम अधिकारों में से एक है। श्रमिकों के लिए विषम परिस्थितियों में कंपनी की विभिन्न तरीके से मदद जरूरी होती है।
हालांकि यह कंपनी के आकार के आधार पर तय होता है लेकिन आवश्यक है। कानून यह कहता है कि यदि किसी कम्पनी में श्रमिक काम करते हैं तो उस कम्पनी पर कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 लागू होता है। इस अधिनियम के तहत कर्मचारी को चोट लगने व घायल होने की स्थिति में कम्पनी उसे बीमा (क्षतिपूर्ति बीमा) लाभ का भुगतान करता है। साथ ही उसे चिकित्सा खर्च व आर्थिक सहायता देना भी कम्पनी की जिम्मेदारी है।
लेकिन कंपनी अपनी इन तमाम नियमों को नजरअंदाज करते हुए घायल श्री झा के इलाज खर्च की दिशा में पूरी तरह से मौन ही दिख रही है। फिलहाल घायल शाखा मैनेजर को किसी भी स्त्रोत से आर्थिक मदद की दरकार है।