धर्मेंद्र कुमार लाठ पूर्णिया ब्यूरो
कई शताब्दियों से जन्माष्टमी पर पूजा एवं मूर्ति का निर्माण करते आ रहे हैं कलाकार पंकज का परिवार
पूर्णिया/ बीकोठी । जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर सुखसेना गांव में पिछले करीब 295 वर्षों से हो रही है श्री कृष्ण जन्माष्टमी पूजा की तैयारी एवं मुर्तियों को तैयार करते आ रहे हैं गांव के ही कलाकार पंकज।
गांव के पुजारी धोगन झा ने बताया कि जब से कृष्णा जन्माष्टमी मेला शुरू हुआ है तब से मेरे बाप दादा पूजा करवाते आ रहे हैं। सुखसेना गांव के कृष्णा जन्माष्टमी मेला की खास विशेषता यह है कि यहां दूर-दूर से लोग अपने नवजात और छोटे बच्चों को लेकर आते हैं और भगवान कृष्ण को चांदी की बांसुरी चढ़ाते हैं। मेला अध्यक्ष शारदानंद मिश्र कहते हैं कि भगवान कृष्ण का सबसे प्रिय वस्तु बांसुरी है। जो बच्चे भगवान कृष्ण को बांसुरी चढ़ाते हैं वह काफी प्रतिभाशाली होते हैं। यहां बांसुरी चढ़ाने की प्रथा भी शुरू से ही है। शारदानंद मिश्र ने कहा कि सुखसेना का कृष्णाष्टमी पूजा इस इलाके में प्रसिद्ध है। यहां दूर-दूर से लोग पूजा अर्चना करने और मन्नतें मांगने आते हैं। यहां लोगों की मन्नते भी पूरी होती है। बच्चा के जन्म के बाद पहली बार जो भी बच्चा इस मंदिर में आते हैं वह भगवान को चांदी का बांसुरी चढ़ाते हैं। चांदी का बांसुरी पूजा कमेटी के तरफ से ही दिया जाता है और उसकी कीमत भी काफी कम रखी गई है ताकि हर वर्ग के बच्चे अपने समर्थ और सुविधा के अनुसार भगवान को बांसुरी चढ़ा सके। वही राधा उमाकांत महाविद्यालय के प्राचार्य पंडित अमरनाथ झा ने कहा कि सुखसेना में श्री कृष्ण मंदिर बहुत पहले से है। पहले यहां फुस का घर था। करीब 191 साल से पहले सुखसेना के श्री कृष्ण स्थान, बरहरा कोठी के दुर्गा मंदिर और भटोत्तर के काली मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए बैठक हुई थी जिसमें सुखसेना श्री कृष्ण स्थान के जीर्णोद्धार की जिम्मेवारी उस गांव के जमींदार बलदेव झा को मिला। वहीं दुर्गा स्थान बरहरा कोठी की जिम्मेदारी युगल किशोर तिवारी और काली मंदिर भटोत्तर के जीर्णोद्धार की जिम्मेवारी वाजित लाल पाठक ने संभाली। इसके बाद सुखसेना के श्री कृष्ण स्थान में काफी पहले टीन का घर नाया गया था। काफी दिनों तक उसी में पूजा अर्चना होती रही। बाद में यहां ग्रामीणों के सहयोग से भव्य मंदिर स्थापित की गई.शारदानंद मिश्र ने कहा कि सुखसेना में पहले नाटक और सांस्कृतिक कार्यक्रम होता था जिसमें गांव के कलाकार अपने अभिनय की प्रस्तुति करते थे। तबला वादक मिथिलेश झा समेत इस गांव के कई कलाकार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी ख्याति बिखेर चुके हैं। पहले यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम और नाटक को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। यहां हर साल तीन दिनों का भव्य मेला भी लगता है जिसमें बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। इस बार भी पूजा समिति और स्थानीय मेला कमेटी द्वारा भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें ग्रामीण युवक बढ़ चढकर हिस्सा ले रहे हैं।